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लघुकथा: सशर्त भक्ति


लघु कथा: राघव और माधव बचपन से ही आध्यात्मिक पथ पर थे। यह सब अचानक नहीं आया। यह राघव और माधव के पारिवारिक माहौल का असर था। शाम को सब मिलकर दस मिनट भगवान का स्मरण करते थे। हर समय, उन्होंने अपना हर काम भगवान को समर्पित कर दिया। वह अपनी सभी समस्याओं का समाधान करने के लिए भगवान में विश्वास करता था।

ईश्वर में उनकी आस्था अतुलनीय थी। भगवान की कथा और भक्तों के चरित्र के माध्यम से मां बच्चों को नई शिक्षा देती थी। इसलिए बच्चों में एकाग्रता बहुत अच्छी थी, क्योंकि वे मन्त्रों का भी जाप करते थे। कई लोग ईश्वर के अस्तित्व में भी विश्वास करते थे। पूरा परिवार आध्यात्मिक यात्रा की ओर अग्रसर था।

एक दिन राघव ने मां से पूछा कि अगर हम भगवान की पूजा और प्रार्थना करते हैं, तो क्या भगवान हमारी सभी इच्छाओं को पूरा करेंगे। हम जो मांगेंगे वही मिलेगा तो मां ने समझाया कि भक्ति किसी भी हालत में नहीं करनी चाहिए। निःस्वार्थ भाव से भक्ति करनी चाहिए। भगवान ने आपको बिना किसी शर्त के इतना अच्छा शरीर, परिवार और खुशी दी है। आप अपनी इच्छा के अनुसार सब कुछ कर सकते हैं। खाना, पीना, यात्रा करना, मनोरंजन करना, गतिविधियाँ करना, भगवान की पूजा करना, ये सब भगवान की कृपा है।

हमेशा याद रखें कि भगवान को किसी बंधन में न बांधें। उन्हें पुकारो और उन्हें दिल से याद करो, लेकिन केवल कुछ पलों के लिए। वे दुनिया के माता-पिता हैं। वे आपसे बिना बात किए ही आपको समझ जाएंगे। प्रभु को अपने रूप में याद करो और सब कुछ उसी पर छोड़ दो। ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखें। हमेशा अपने आप को अच्छे विचारों और अच्छे विचारों से समृद्ध करें। भगवान ने हमेशा मानव शरीर में लड़ाई लड़ी और धर्म के लिए नए कीर्तिमान स्थापित किए। प्रभु ने संसार को सब्र का पाठ पढ़ाया।

भगवान ने भी गलतियाँ कीं और उन्हें सुधारा। भगवान ने भक्तों के लिए रिश्तों के कई उदाहरण मानव शरीर में रखे हैं। उन्होंने सत्य के लिए अपने प्रियजनों का भी विरोध किया और स्वयं सत्य की लड़ाई में कई चुनौतियों को स्वीकार किया। कभी भी किसी भी शर्त पर भक्ति न करें, क्योंकि यदि आप शर्त रखते हैं कि मेरी यह इच्छा पूरी होगी, तो मैं यह पूजा करूंगा, मैं यह पाठ करूंगा। आप जो कुछ भी करते हैं, उसे प्यार और ईश्वर में पूर्ण विश्वास के साथ करें।

इस लघुकथा से क्या सीखा जा सकता है?

यह लघुकथा सिखाती है कि बच्चों को शर्तों पर जीने की आदत नहीं डालनी चाहिए। न ही उन्हें किसी भी हालत में भक्ति या अध्यात्म से न जोड़ें। यदि वे जीवन को शर्तों पर जिएंगे, तो वे जीवन में शांति और शांति प्राप्त नहीं कर पाएंगे। समय के अनुसार हर बदलाव को स्वीकार कर आगे बढ़ना ही हमारे लिए सही है। भक्ति हमें ईश्वर के अस्तित्व और चीजों के अस्तित्व में विश्वास और दृढ़ता प्रदान करती है। अध्यात्म मार्ग की ओर बढ़ते समय मन में केवल प्रेम होना चाहिए, मनचाहा फल पाने की इच्छा नहीं होनी चाहिए।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवि और लेखक)

पोस्ट शॉर्ट स्टोरी: भक्ति विद कंडीशंस सबसे पहले News24 हिंदी पर छपी।

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